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ग्रामीण महिलाओं की श्रम सहभागिता में उत्तरोत्तर कमी पाई जा रही है

ग्रामीण महिलाओं की श्रम सहभागिता में उत्तरोत्तर कमी पाई जा रही है , जो आवश्यक रूप से एक स्वस्थ, मजबूत एवं लोकतांत्रिक देश के लिए गहन चिंतनीय विषय है। कोविड-19 महामारी के दौरान में लॉकडाउन के कारण ग्रामीण महिलाओं की कार्यशीलता जीवन तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उनकी सहभागिता नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई है । राष्ट्रीय श्रम बल सर्वेक्षण 2017-18 के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण युवा महिलाओं का केवल एक चौथाई भाग श्रमबल का हिस्सा है जिसका प्रमुख कारण समाज का पितृसत्तात्मक होने के साथ कार्य एवं भूमिकाओं का निर्धारण लिंग के आधार पर किया जाना है । समाज ग्रामीण महिलाओं को वैसे अवसर उपलब्ध नहीं कराता जैसे पुरुषों को उपलब्ध कराता है । घरेलू एवं ग्रामीण महिलाओं के कार्य को पैसे में नहीं मापा जाता है, जिससे इस कार्य के मौद्रिक मूल्य को देश की जीडीपी में शामिल नहीं किया जाता है। इससे देश की राष्ट्रीय आय में घरेलू महिलाओं की आर्थिक सहभागिता नहीं हो पाती जबकि घरेलू एवं ग्रामीण महिलाएं बाहर कार्य करने वाली किसी महिला की अपेक्षा अधिक समय तक कार्य करती है । 
नोबेल पुरस्कार विजेता रोजालीन सुसमैन यालो  लिखती है " मानवता गरीबी, बेरोजगारी ,भुखमरी, बीमारी कुपोषण, गृह युद्ध जैसी समस्याओं से जूझ रही है और अगर पुरुषों को अभी यह लगता है कि वह इन समस्याओं का समाधान ढूंढ लेंगे तो वे अपने और अपनी भविष्य की पीढ़ियों के साथ क्रूर मजाक कर रहे हैं "
यह समय की मांग है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण बदलाव के दौर में महिलाओं की समान भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना चाहिए । ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक शक्ति एवं उनकी प्रभावशीलता में विस्तार हेतु पुरुष प्रधान समाज का नारी के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव आना चाहिए । 

 प्रशांत चतुर्वेदी
दिल्ली

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