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प्रशांत चतुर्वेदी by MAU Beat Media

प्रशांत चतुर्वेदी

            प्रवासी कामगार
महामारी के मद्देनजर औद्योगिक क्षेत्रों में कामगारों और श्रमिकों का रिवर्स माइग्रेशन एक नई समस्या के रूप में सामने आया है । इस प्रकार से अचानक प्रवासन से इनके सामने आजीविका की समस्या पैदा हो गई है। साथ ही योग्यता के अनुसार सरकारों को इन कामगारों को रोजगार देना भी एक नई चुनौती है। 
प्रवासी कामगार शहर से उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में लौट रहे हैं। गांव में कुटीर उद्योग व पंचायती राज गांधीवादी सिद्धांतों के ही अनुकूल है।  गांधीजी का कहना था कि जब तक भारत के गांव में लोगों को आर्थिक और सामाजिक आजादी नहीं मिलती, भारत एक स्वतंत्र देश नहीं हो सकता। आर्थिक रूप से गांधी के विचारों को प्रायः यूटोपियन  बताकर खारिज कर दिया जाता है । 
गांधी भारत के सर्वाधिक गरीब लोगों की क्षमता को पहचानते थे जो अर्थशास्त्रियों के लिए महज आंकड़े थे। गांधीजी का मानना था कि जीडीपी केवल मानव के उपयोग के बजाय मानव की सेवा और आवश्यकता को पूरा करने वाला होना चाहिए।  इस दृष्टिकोण में  गांधी और ली कुआन यू के विचार एक समान थे । ली के लिए सिंगापुर को पूरी तरह से विकसित करने का अंतिम उपाय जीडीपी का आकार नहीं बल्कि नागरिकों की आय थी। वर्ष 1947 के बाद भारत के पास दो रास्ते थे । यह आर्थिक गतिविधि व माननीय विकास के लिए पश्चिमी देशों का अनुसरण कर सकता था या गांधीवादी अर्थव्यवस्था को अपनाता। 
वर्तमान स्वास्थ्य और आर्थिक संकट ने लोगों को इस बात पर विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है कि महामारी के बाद किस रास्ते को चुना जाए । भारत जीडीपी के सामान्य अर्थव्यवस्था पर पुनः वापस आ जाएगा या अधिक मानवीय व अधिक स्थानीयकरण के अर्थशास्त्र की ओर रुख़ करेगा ।

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