तमसा तट स्थित मड़ैया घाट आज शिक्षा और संस्कृति की सांझी परम्परा को अपने आप में समेटे हुए है। यहां पर शहर के सर्वोत्तम हिंदी माध्यम के विद्यालय के साथ ही मठ और मंदिरों की अनूठी झलक शहरवासियों के लिए दर्शनीय है। लेकिन इस सांझी परम्परा का विकास अक्समात् नहीं हुआ बल्कि यह सब समाज की एक सशक्त पीढ़ी के संघर्ष का प्रतिफल हैं ।और इस पीढ़ी के अगुआ रहे बाबू रामाश्रय सिंह।
रामस्वरूप भारतीय विद्यालय के सच्चे संस्थापक
लगभग चार दशक पूर्व स्थापित राम स्वरूप भारतीय विद्यालय आज शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी और आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण हैं।तमाम अड़चनों के बाद भी विद्यालय भवन निर्माण से लेकर, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार व आधुनिक उपकरणों की स्थापना में रामाश्रय सिंह ने अहम भूमिका निभाई है। विद्यालय के इतिहास पर दृष्टि डाली जाए तो वास्तव में रामाश्रय सिंह, राम स्वरूप भारतीय विद्यालय के सच्चे संस्थापक के रुप में दिखाई पडतें हैं।
मठ- मंदिर के उद्धारक
कभी समाज की उपेक्षाओं का शिकार रहा मडैया घाट स्थित शिव जी मठ और राम जानकी मंदिर आज लोगों के कौतूहल का केन्द्र बना हुआ हैं।इसके पीछे रामाश्रय सिंह का समर्पण ही हैं जिन्होंने जीर्ण-शीर्ण हो चुके इन प्राचीन स्थलों का जीर्णोद्धार कर इसे एक रमणीक स्थल के रूप में विकसित किया। अपनी पीढ़ी का नेतृत्व कर इन्होंने इस स्थान का जिस प्रकार कायाकल्प किया है वह वास्तव में एक उद्धारक के रुप में उनके चरित्र को प्रस्तुत करता है।
रामलीला समिति में भी निभाते हैं अहम भूमिका
मड़ैया बाबा धनुष यज्ञ मेला समिति,जो राम के मर्यादित चरित्र को समाज के पटल पर रख कर नवयुवकों को मर्यादा के साथ जीने की राह दिखाती हैं,में भी बाबू रामाश्रय सिंह अहम भूमिका में दिखायी पड़ते हैं। पात्रों का उत्साहवर्धन हो या फिर नयें कलाकारों को प्रशिक्षित करना रामाश्रय सिंह हर वर्ष उर्जा के साथ डटे रहते हैं।
रामाश्रय सिंह के इन सभी कार्यों को देखा जाए तो वास्तव में वो भगीरथ की भूमिका में नजर आतें हैं ।मठ घाट के जीर्ण-शीर्ण होने से लेकर,लोगों के रोध-प्रतिरोध के बाद भी उन्होंने न केवल उन परम्पराओं का संवहन किया बल्कि उसे आधुनिक स्वरूप देकर उसे नये सांचे में ढाला हैं।इसके पश्चात रामाश्रय सिंह को 'तमसा का भगीरथ' कहा जायें तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं होगी।
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