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Birthday special:-घुमक्कड़ राहुल सांकृत्यायन जिन्होंने बिना साधन ही गढ़ा था बौद्ध धर्म पर युगांतरकारी शोध

आज जब दुनिया भर का ज्ञान और जानकारियां नेट की कृपा से बटन दबाकर हासिल किया जा सकता है, नई पीढ़ी नई साहित्य विधाओं के रचयिता और दुर्लभ प्राचीन भारतीय साहित्य के खोजी यायावर महापंडित राहुल सांकृत्यायन के महान योगदान को तकरीबन भुला चुकी है। उनका जन्म 9 अप्रैल 1893 में कनैला गांव में हुआ । पिता का नाम गोवर्धन पाण्डे और माता का नाम कुलवंती देवी था। राहुल जी का जन्मनाम केदारनाथ पाण्डे था। 14 साल की उम्र में उनका विवाह कर दिया गया जिसके विरोध में वे घर से भाग कर कुछ समय तक साधु बन गए। इस बीच उनकी रुचि बौद्धधर्म में बढ़ती गई और 1930 में उन्होंने विधिवत बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर राहुल सांकृत्यायन नाम धारण किया। काशी के पंडितों ने उनको महापंडित की उपाधि दी थी। बुद्ध , मार्क्स लेनिन और माओ से प्रभावित, बहुभाषाविद राहुल जी हिंदी में कथा लेखन, इतिहास और यात्रावृत्त विधाओं के नामचीन नगड़दादाओं में हैं ।

उनकी ज्ञान पिपासा अथाह थी । भारत से लुप्त हो चुके अनेक बौद्ध ग्रंथों को वे सुदूर तिब्बत, कोरिया, चीन और जापान तक कठिन परिस्थितियों के बीच की गई अनेक दुर्गम यात्राओं के मार्फ़त वापिस लाए। कभी पैदल तो कभी टट्टुओं की पीठ पर भ्रमण करते हुए 19वीं सदी के पूर्वार्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत/यात्रा साहित्य और विश्व-दर्शन के क्षेत्र में जो योगदान किया वह आज के सुविधा सम्पन्न युग के अधिकतर अकादमिक भी नहीं कर पाते हैं। बौद्ध धर्म पर उनका शोध हिन्दी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है, जिसके लिए उन्होंने बहुत कम साधन होते हुए भी बरसों तक तिब्बत से श्रीलंका तक भ्रमण किया। मध्य एशिया पर उनके इतिहास को 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मध्य-एशिया तथा कॉकेशस भ्रमण पर उनके यात्रा वृतांत भी साहित्यिक दृष्टि से आज बड़े महत्वपूर्ण हैं।

वोल्गा से गंगा, राहुल सांकृत्यायन की प्रसिद्ध रचनात्मक कृति है, जो मातृसत्तात्मक समाज में स्त्री के बर्चस्व की बेजोड़ रचना है। यह राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखी गई बीस कहानियों का संग्रह है। इसकी कहानियां आठ हजार वर्षों तथा दस हजार किलोमीटर की परिधि में बंधी हुई हैं। उन्हे पद्मभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।


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